जीवन का कोई भी रिश्ता हो
जब टूट जाता है
तो अफ़सोस देकर जाता है
पछतावा होता है कि
एक बार बात करनी चाहिए थी
पर बात करने के बाद भी पछतावा ही होता है
दोनों ही सूरत में अफ़सोस साथ नहीं छोड़ता
जब कभी हम अपना दुःख किसी से कहते है
तो कोई उस दुःख को संभाल के नहीं रख पाता
ये दुःख एक न एक दिन वापस लौट आता है
क्यों कि ये आपका का ही है
दुःख दोबारा वापसी मे
कई गुना बढ़ के
और विस्तृत होकर आता है
तब महसूस होता है कि
बेकार में अपनी आत्मा से छल किया
मौन रहना ही बेहतर था और है ।