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अबकी बार / शिवनारायण जौहरी 'विमल'

अबकी बार जब मैं आउगा इक दिन
स्मृति पटल के सभी अक्षर मिटा कर
आखों पर से केचुल उतरवा कर
 नए मुलायम चिकने रेशमी
 परिधान धारण कर।
 हजारों खिलोने मेरे पालने को
 चूमने के लिये आतुर
 लाइन में खड़े होगे।

  हरे पत्तों से छनकर आई धूप
 आंगन में बैठी मिलेगी।
 धुँआ और धूल कूड़े दान में
 रोते पड़े होंगे
 नीले आकाश में झाडू
 पोंछा लग चुका होगा
 दरवाजे पर पड़े खून के छींटे
 धोए जा चुके होंगे।

 मलियानिल खिडकी द्वार से
 झगड़ कर घर में घुस गई होगी
 घर सुवासित हो चुका होगा
 दीवारे लिप पुत कर
साफ़ हो चुंकी होंगी।
अब की बार जब मैं आऊगा
रहने लायक हो गया होगा मेरा घर।।