काग़ज़ पर आसमानी आकाश बनाकर वह बैठा है चौखट पर माँ जैसे घर में घुसती है वह गले लगाकर पूछता है: मैंने तो पूरा आकाश काग़ज़ पर जमा रखा है बिना आकाश के तुम कैसे रही बाहर? माँ ने उसके सिर को सहलाते हुए कहा : वह दूसरा आकाश है जो बहुत बड़ा है