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अबोली बीन / विमल राजस्थानी


है पड़ी कब से अबोली बीन, आतुर तार, कोमल-
अंगुलियों का स्पर्श मृदु दे दो सुहाना

कब तलक यह रात सन्नाटा बुनेगी
कब तलक स्वर-सुन्दरी सिर को धुनेगी
कब तलक तारे भरेंगे सिसकियाँ री !
कब तलक नभ-अश्रु यह दूर्वा चुनेगी

कब तलक गहरी उदासी कुंज झेलें
विकल कोकिक-कण्ठ में तड़पे तराना

नींद से चैंकी नहीं सौदामिनी है
प्यास पीड़ा की बनी अनुगामिनी है
बावला पावस भटकता मेघ-मग में
राग वैरागी, वियोगीनी रागिनी है

इन्द्रधनुषी मन मरे सातों सुरों के
तुम न ढूँढो और अब कोई बहाना