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आपृच्छस्व प्रियसखममुं तुग्ड़मालिग्ड़च शैलं
वन्द्यै: पुंसां रघुपतिपदैरकिड़तं मेखलासु।
काले काले भवति भवतो यस्य संयोगमेत्य
स्नेहव्यक्तिश्चिरविरहजं मुञ्चतो वाष्पमुष्णम्।।
अब अपने प्यारे सखा इस ऊँचे पर्वत से
गले मिलकर विदा लो जिसकी ढालू चट्टानों
पर लोगों से वन्दनीय रघुपति के चरणों की
छाप लगी है, और जो समय-समय पर
तुम्हारा सम्पर्क मिलने के कारण लम्बे विरह
के तप्त आँसू बहाकर अपना स्नेह प्रकट
करता रहता है।