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अब का समुझावती को समुझै बदनामी के बीज तो बो चुकी री / ठाकुर

अब का समुझावती को समुझै बदनामी के बीज तो बो चुकी री ।
तब तौ इतनौ न बिचार कयो इहिँ जाल परे कहु को चुकी री ।
कहि ठाकुर या रस रीति रँगे करि प्रीति पतिब्रत खो चुकी री ।
सखि नेकी बदी जो बदी हुती भाल पै होनी हुती सु तो हो चुकी री


ठाकुर का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।