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अब क्या होगा? / जितेन्द्र 'जौहर'

(कविवर अशोक ‘अंजुम’ से गीतात्मक प्रश्नध)

मान-पत्र कोयल के,
कौवों ने मिलकर छीने;
अंजुम जी! बतलाओ...
आख़िर अब क्या होगा?

सरेआम लुट गये क़ाफ़िये,
बँधे रदीफ़ों में!
उस्तादों ने झटक लिये,
बिन माँगी भीखों में!

ग़ज़लों का है हाल आजकल
जाली नोटों-सा;
अंजुम जी! समझाओ...
आख़िर अब क्या होगा?

कोटि-कोटि कवि-काग मंच पर,
आकर टूट रहे।
सरेआम चुटकुले भाँजकर,
ताली लूट रहे!

‘काँव-काँव’ सुन हंस-वंश भी,
बेबस मौन खड़ा;
अंजुम जी! फरमाओ...
आख़िर अब क्या होगा?