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अब तो जागऽ / राम सिंहासन सिंह

सूरज निकलल अब तो जागऽ।
देख बाहर, जाग-जागऽ।।
भाग रहल हे समय सुहावन।
अभियो तू तो निद्रा त्यागऽ।।
आलस-तन्द्रा-निंद्रा में ही
अब तक समय बितयली हे हम
ई दुसमनवा के संग रह के
सब कुछ इहाँ गवयली हे हम।।
हर छन समय पुकार रहल हे
अब तो जागऽ भारतवासी।
जब तू डर क आगे अयबऽ
तभिये मिट तो सभे उदासी।।
घर बैठे से काम न चल तो
दुराचार नित बढ़ते जयतो
भ्रष्टाचारी दानव सब के
सिर पर हरदम चढ़ते जयतो।।
जाग आऊ जगाबऽ सबके
सबके सुन्नर राह दिखाबऽ।
सच्चाई के पथ पर चलके
ई धरती के मान बढ़ावऽ
अमदी-अमदी जब जग जयतो
देसवा सुन्नर खुद बन जयतो
बनतो नया समाज सभी के
दुखवा अपने ही मिट जयतो।
चमचम देसवा चमके लगतोऽ
सब में नूतन हर्ष जगयतो।
उन्नति के आदर्स सिखर पर
अपन भारत खुद चढ़ जयतो।।