जो तुम्हें इष्ट है
वह अब नहीं होगा।
मैं खुब जानता हूँ
सृष्टि
तुम्हारी भी विवशता है
कृपा नहीं
तुम्हें उस की तलाश थी
जो तुम्हें पूरा करे
और सार्थक भी।
वह अर्थ-मुझे पता है
मुझ में,
मेरे दर्द, मेरे समर्पण में है !
अधूरे होने का एक दर्द है
और अर्थ भी
तुम भी तो उसे जानो
जैसे मैं ने जाना है।
तुम्हें जो इष्ट है
वह तो अब नहीं होगा।
(1969)