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अब मुझे आपत्ति नहीं / दिलीप चित्रे

तुम पहुँच सकते हो
न तो
दुनिया के शीर्ष पर
न ही उसके तल तक

तुम हमेशा उसके
एकदम भीतर ही रहोगे
कुछ भी नहीं
दर्द देता है कभी भी
कुछ भी सुख नहीं देता
यह चारागाह
भेड़ के मुँह से ज़्यादा
मिले हुए को चरती

हे प्रभु मेरे गड़रिये !
हे प्रभु …

गोविन्द,
तुम जारी रहो अपनी गौओं के साथ
अब मुझे आपित्त नहीं
किसी चीज़ से