Last modified on 29 अगस्त 2012, at 20:13

अब ये फूल-फूल रस भीने / गुलाब खंडेलवाल


अब ये फूल-फूल रस भीने
कितना तप-तप कर पाई है यह शोभा धरती ने!

तीर प्रखर थे रवि किरणों के
उपल-वृष्टि, झंझा के झोंके
किसमें साहस था पथ रोके
पर इनका मधु छीने!

फूल भले ही ये कुम्हलाये
यहाँ देर तक ठहर न पायें
पर न मलिन होंगी मालायें
जो दीं गूँथ किसी ने

अब ये फूल-फूल रस भीने
कितना तप-तप कर पाई है यह शोभा धरती ने!