राग पीलू, ताल धुमाली 12.9.1974
अब हम केवल स्याम के।
तन-मन इन्द्रिय हैं न हमारे, ना ये जग के काम के॥
सब में बसे एक नँद नन्दन, ये सब ललित-ललाम के।
प्रीतम-प्रीति पगे जब सब ही, रहे न तब ये चाम के॥1॥
अंग-अंग में बसे निरंजन, रंजन जो पर-धाम के।
यासों अब कछु रह्यौ न जग को, भये अंग सब स्याम के॥2॥
स्रवननकों न सुहात बात कोउ, भये रसिक ये नाम के।
नयनन में नँदलाल विरोजे, मरे मान अब काम के॥3॥
मन में जब मनमोहन आये भये वही प्रिय प्रान के।
सब कुछ दै पाये हम प्रीतम, अब हम प्रानाराम के॥4॥