Last modified on 13 जुलाई 2009, at 21:30

अभंग-5 / दिलीप चित्रे

चढ़ते ही मेरे
तू हो गया पठार
आर-पार बहे
तेरी हवा

पत्थर-झाड़ियों को भी
सतत स्पर्श तेरा
अब नहीं बैठूंगा
मन्दिर में


अनुवाद : चन्द्रकांत देवताले