जो कुछ कहना हो उसे
—ख़ुद से भी चाहे—
व्यंजना में कहती है वह
कभी लक्षणा में
अभिधा में नहीं लेकिन
कभी
कोई अदालत है प्रेम जैसे
क़बूल अभिधा में जो
कर लिया
—सज़ा से बचेगी कैसे !
15 अप्रैल 2010
जो कुछ कहना हो उसे
—ख़ुद से भी चाहे—
व्यंजना में कहती है वह
कभी लक्षणा में
अभिधा में नहीं लेकिन
कभी
कोई अदालत है प्रेम जैसे
क़बूल अभिधा में जो
कर लिया
—सज़ा से बचेगी कैसे !
15 अप्रैल 2010