Last modified on 9 नवम्बर 2009, at 20:18

अभिलाषा / इला प्रसाद

मैं सप्त सुरों में गाऊँ

एक सुर आँखों से बहे
आकुल मन की व्यथा कहे
आँखों में उतर जाए

एक सुर अधरों से झरे
तरल शीतल सुधा-धार
कानों में अमृत भरे

एक सुर हाथ रचें
कर्मों के तार बजें
गूँजे संसार

मन की भाषा मन कहे
मनों को दुलराता रहे
अनाहत-रव बजे
स्पंदित हों प्राण

सिर्फ़ बैखरी नहीं
मध्यमा और पश्यंती की
वाणी भी गूँजे
पूरा हो सुर-संसार