सखि हे, आज जाएब मोहि।।
घर गुरूजन-डर न मानब, वचन चूकब नाहि।।
चाँदन आनि-आनि अंग लेपब, भूषण कए गजमोती।।
अंजन विहुँन लोचन-युगल धरत धवल जोती।।
धवन बसनें तनु झपाओब गमन करब मन्दा।।
सखि हे, आज जाएब मोहि।।
घर गुरूजन-डर न मानब, वचन चूकब नाहि।।
चाँदन आनि-आनि अंग लेपब, भूषण कए गजमोती।।
अंजन विहुँन लोचन-युगल धरत धवल जोती।।
धवन बसनें तनु झपाओब गमन करब मन्दा।।