अभी टिमटिमाते थे
अब मुँहा-मुँही आग पकड़ते हैं
टेसू के फूल
इच्छा से
अनिच्छा से
जलती है वह
जो देह है आत्मा की
कभी-कभी
सेमल के सुर्ख में अटक कर
भ्रम होने लगता है ---
वह जो अग्नि है
कहाँ-कहाँ टहल आती है
देह की तलाश में
अभी टिमटिमाते थे
अब मुँहा-मुँही आग पकड़ते हैं
टेसू के फूल
इच्छा से
अनिच्छा से
जलती है वह
जो देह है आत्मा की
कभी-कभी
सेमल के सुर्ख में अटक कर
भ्रम होने लगता है ---
वह जो अग्नि है
कहाँ-कहाँ टहल आती है
देह की तलाश में