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अभी सृष्टि ज़िंदा है / कुमार रवींद्र

पीपल का पात हिला
उससे ही पता चला
       अभी सृष्टि ज़िंदा है
 
शाहों ने मरण रचा
बस्तियाँ मसान हुईं
सुबह-शाम-दुपहर औ' रातें
बेजान हुईं
 
     कहीं कोई फूल खिला
उससे ही पता चला
       अभी सृष्टि ज़िंदा है
 
शहजादों का खेला
गाँव-गली राख हुए
सारे ही आसमान
अँधियारा पाख हुए
 
    एक दिया जला मिला
उससे ही पता चला
       अभी सृष्टि ज़िंदा है
 
नाव नदी में डूबी
रेती पर नाग दिखे
संतों की बानी का
कौन भला हाल लिखे
 
   रँभा रही है कपिला
उससे ही पता चला
     अभी सृष्टि ज़िंदा है