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अमरता / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल

अमरता (कविता अंश)

वहां लेट,
उगते फूलों की मृदु शैया पर
मरती थी,
आहे भर- भर कर एक सुंदरी,
पूछा मैने- कौन!
पड़ी हो तुम यों भू पर?
बोली वह-
मैं हाय, अमरता मरण से भरी,
(अमरता कविता अंश)