धरनी अमलन को कहै, खात पियत संसार।
अमली ताहि सराहिये, तत्त्व अमल मतवार॥1॥
धरनी अमली सो भला, सदा रहै मस्तान।
मदते मति होत जो, ते नर क्रूर कुजान॥2॥
धरनी अमली सो भला, चहुँदिशि फिरै निशंक।
साँच वचन वक्कत रहे, राजा गनै न रंक॥3॥
धरनी अमल अनूप है, राम कृपाते पाव।
अब उपाय मिली है नहीं, रंक होउ कै राव॥4॥
नयनन मदिरा जो पिवै, श्रवनन चाखै गोश्त।
माँग तमाखू नाशिके, ते धरनी के दोस्त॥5॥