(राग भीमपलासी-तीन ताल)
अमावास्या घोर तममयी देख, न होओ तनिक निराश।
होगा निश्चय ही ज्योतिर्मय सूर्योदय, कर तमका नाश॥
मत घबराओ, देख घोर घन वर्षा-झंझा-विद्युत्पात।
होगा नभ निर्मल-उज्ज्वल, सुरभित-मृदु-मन्द बहेगा बात॥
मत भय करो, देख क्षुधोदधिके भीषण उाल तरंग।
ललित लहरियाँ शान्त पुनः दीखेंगी, बदलेगा यह रंग॥
मत होओ उद्विग्र, देखकर घोर ग्रीष्मका भीषण ताप।
बरसेगी शीतल जल-धारा, हर लेगी सारा संताप॥
प्रलय भयंकर है, बस नव मधुमय सर्जनका गोपन रूप।
छिपे हँस रहे इसमें नित नव लीलामय रसराज अनूप॥
भीषण-सुन्दर प्रलय-सृजनमें एक पूर्ण वे ही हैं नित्य।
सबमें मञ्जुल दर्शन उनका, यही देखना-पाना सत्य॥