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अमीर कलोनियों में / अमरजीत कौंके

अमीर कालोनियों में
बच्चे सड़कों पर
गेंद बल्ला नहीं खेलते
औरतें घरों की छतों पर
कपडे नहीं सुखातीं
नहीं खरीदतीं रेहड़ी वाले से सब्ज़ी
करती नहीं चीजों के मोल भाव

अमीर कालोनियों में
दीवारों से
शोर बाहर नहीं आता
कहीं कोई हँसी
न रोने की आवाज़ सुनती है
किसी के लड़ने, झगड़ने का
पता नहीं चलता कुछ भी
कंक्रीट की दीवारें
सब कुछ अपने भीतर
जज़्ब कर लेती हैं

अमीर कालोनियों में लोग
सीले ठन्डे कमरों में
रहने के आदी होते हैं
वह टूटते हैं
पहले दुनिया से
फिर परिवार से
फिर बच्चों से
और आखिर अपने आप से भी
टूट जाते हैं लोग

टूट जाते हैं
और ख़ुद को
दीवारों के भीतर
कैद कर लेते हैं

अमीर कालोनियाँ
धीरे-धीरे
कंकरीट के जंगलों में
परवर्तित हो रही हैं।