अमृता!
तुम्हें आना पड़ेगा...
मेरी सोच से उतरकर
मेरी रूह की गलियों से गुजर कर
मेरी नसों में लहू बनकर
मेरी उँगलियों के पोरों से
कसे कलम से
सफेद कागज पर
सुफियाने नज़्म की तरह
उतरना पड़ेगा
अमृता!
तुम्हें आना पड़ेगा...
अमृता!
तुम्हें आना पड़ेगा...
मेरी सोच से उतरकर
मेरी रूह की गलियों से गुजर कर
मेरी नसों में लहू बनकर
मेरी उँगलियों के पोरों से
कसे कलम से
सफेद कागज पर
सुफियाने नज़्म की तरह
उतरना पड़ेगा
अमृता!
तुम्हें आना पड़ेगा...