कुछ मर्तबान खाली रहते हैं
शीशों के
धूप, खालीपन उन्हें चटका देती है
उनमें बिछुड़े ख्वाबों की
लोगों के स्मृतियों की
मद्धम खटास भरी
थिरकती
सुनहरी मद्धम
आँच जलाओ
वह खुशबूएँ हर लेती हैं
रंजो गम
आज और कल की
आबनूसी माहौल को ढक लेती है
खुशगवार बातों की
अलहदा खुशबू होती है
उन्हें इत्र सा सहेज लेते हैं
कान की शिराओं के करीब
वह लोबान सी महकती
नसों में तिर कर
इक तिलिस्म खड़ा कर देती है
इन्हीं में बसर है जिंदगी का
कुंडलियों में जो
अमृत सा धरा है!