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अमृत स्याही / पुष्पिता

तुम्हारी आँखें
सेती हैं दूसरों के लिए सपने
चिड़िया की तरह

दूसरों को सुख देने की
खोज में लगी
तुम्हारी आँखें
रचती हैं सुख
अपनी निर्मल झील में

तुम्हारी आँखों के
सौंदर्य को
पीती हैं मेरी आँखें
ओंठ बनकर
जिसमें रिसता है सौंदर्य
अधर तक के लिए

ट्यूलिप सी
तुम्हारी आँखों तक
पहुँचकर
बुझ जाती है
अकेलेपन की आग

तुम्हारी आँखों से
लेती हूँ दुनिया देखने
और रचने की दृष्टि
और शक्ति।

तुम्हारी आँखों के लिए
बनाना चाहती हूँ दुनिया
जिसमें आँसू न हों।

आँसू
दुनिया के लिए
आँख का पानी है
लेकिन तुम्हारे लिए
दुःख की आग है।

तुम्हारी आँखों से
पैदा होते हैं सपने
सूनी, खाली और डरी हुई
लेकिन भोली और मासूम
आँखों के लिए।

तुम्हारी आँखों से
होकर जाते हैं शांति पथ
पहुँचते हैं अथाह सागर तट तक
धोती हूँ जिससे
हिंसक घाव।