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अम्मा दे आशीष / राजा अवस्थी

अम्मा दे आशीष
कन्हैया तू आबाद रहे।

दीवाली की रात यशोदा
लक्ष्मी पूज रही;
परमा द्वारे गोवर्धन
फिर भाई दूज रही;

माथे की दुखती फुड़िया-से
भैया याद रहे।

बेमौसम मेघों का घिरना
शीतलहर आना;
ठिठुरा मन चाहे जी भरकर
फिर-फिर अलसाना;

जड़ताओं के बीच पिता
दहके संवाद रहे।

अनुनय, विनय, चिरौरी अम्मा
सब एक रूप रहे;
पिता जिद्द, आदेश, अकड़ में
जलती धूप सहे;

छाया के छतनार पेड़
बब्बा आल्हाद रहे।