अम्मा दे आशीष
कन्हैया तू आबाद रहे।
दीवाली की रात यशोदा
लक्ष्मी पूज रही;
परमा द्वारे गोवर्धन
फिर भाई दूज रही;
माथे की दुखती फुड़िया-से
भैया याद रहे।
बेमौसम मेघों का घिरना
शीतलहर आना;
ठिठुरा मन चाहे जी भरकर
फिर-फिर अलसाना;
जड़ताओं के बीच पिता
दहके संवाद रहे।
अनुनय, विनय, चिरौरी अम्मा
सब एक रूप रहे;
पिता जिद्द, आदेश, अकड़ में
जलती धूप सहे;
छाया के छतनार पेड़
बब्बा आल्हाद रहे।