हो गया कम्पित शरद के शान्त, झीने ताल-सा
तन
आह, करुणा का अयाचित एक झोंका
सान्त्वना की तरह मन की सतह पर लहरा गया
कहाँ से उपजा ?
कहाँ को गया ?
हो गया कम्पित शरद के शान्त, झीने ताल-सा
तन
आह, करुणा का अयाचित एक झोंका
सान्त्वना की तरह मन की सतह पर लहरा गया
कहाँ से उपजा ?
कहाँ को गया ?