Last modified on 31 अक्टूबर 2009, at 23:35

अयोध्या / अग्निशेखर

जीवित हो रहे हैं मुर्दे
अयोध्या का जाप करने वालों की
खुल रही हैं आँखें
चुकाया नहीं जा सकता है
मुर्दों का ऋण
अतीत खुजा रहा है पाँखें

धर्म
सिर पर नहीं
छतों पर चढ़कर अब बोलता है नगर में
प्रतिष्ठित हुई हैं ईंटें
देवताओं की तरह पूजित
मरी हुई ईंटें
इतिहास का वितरित हुआ प्रसाद

हे राम !
तुम कितनी त्रासदियाँ देखोगे