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अरघान की फैल / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"

अरघान की फैल,
मैली हुई मालिनी की मृदुल शैल।

लाले पड़े हैं,
हजारों जवानों कि जानों लड़े हैं;
कहीं चोट खाई कि कोसों बढ़े हैं,
उड़ी आसमाँ को खुरीधूल की गैल-
अरघान की फैल।

काटे कटी काटते ही रहे तो,
पड़े उम्रभर पाटते ही रहे तो,
अधूरी कथाओं,
करारी व्यथाओं,
फिरा दीं जबानें कि ज्यों बाल में बैल।