अरुण अधर पर, मुरली मधुर धर, चित्त चित्तचोर तुम, चित्त को चुराय हौं।
श्याम घन सम तन, मोरे कान्हा प्राण धन, नैन के ही पंथ धर, उर में समाय हौं।
बसते हो कण-कण, ठौर-ठौर मधुवन, किन्तु देखूँ जब तुम्हें, मोहे भरमाय हौं।
तन मन वार जब, तुम्हें उर धार जब, चलती हूँ एकनिष्ठ, मुझे क्यों सताय हौं।