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अरे,कोई है / अवतार एनगिल

शहर---जो मेरा अपना था
शहर---जो मेरा सपना था
उसी शहर की बेगानगी की सच्चाई में झुलसा
हस्पताल के जंत्तर=मंत्तर बरामदों में
बेतहाशा दौड़ता हूँ
रास्ते में अटी है एक गठरी
अचानक हिलती है
दो घायल पांव
बाहर निकलते हैं
और गठरी
हस्पताल के मुख्य द्वार की ओर चलने लगती है
बेवकूफ लाश नहीं जानती
कि मुख्य द्वार से परे शहर है
कि शहर में आधी सदी से कर्फ्यू है

मेरे ज़ख्मी पांवों से कुहरा चू रहा है
गलियारे में मुड़ते समय
पांव में ग्लूकोज़ की टूटी बोतल गड़ी थी
अब याद आया
चिकित्सालय की देहरी लांघते हुए
मैंने जूते उतार दिये थे
ऐसे में आती है
उछलती--कूदती व्अही लाश
और
मेरे कान के पास मुंह करके कहती है :
अरे बौखलाये आदमी
इतना भी नहीं जानते
कि हस्पताल कोई मंदिर-मस्जिद नहीं
जिसमें जाते समय
उतारे कोई जूते


वार्ड नम्बर दो से धुआं उठ रहा है
निकल रही हैं लपटें
पर भीड़ की यह नपुंसक ईकाई
हंस क्यों रही है

इस जलते शयन कक्ष में
फायर ब्रिगेड का वह शख़्स
उस औरत की छातियां क्यों टटोल रहा है?
आग से बाहर क्यों नहीं निकालता उसे?
उसने औरत के झुमके क्यों नोच लिये हैं ?
अरे कोई है ?
देखो तो
अग्नि-दस्ते का वह सिपाही
उसी औरत को आग में झोंककर
खाली हाथ
उस जलते हस्पताल से निकल रहा है
इसी वार्ड के
जलते एक कमरे में
उस मोटे शख़्स के मुंह से
राल क्यों टपक रही है
वह उस नन्हीं बच्ची को क्यों रोंद रहा है
देखते नहीं
उसकी टोपी बीच हवा में
अटक गई है
और
राजधानी के चौक में
एक चीख
जलते हुए टायर में अटक गई है

इस बेगाने शहर में
सपने की बौखलाहट में
मुझे लगता है
कि चीख ने अपने अर्थ खो दिये हैं
तभी तो
सफेद कोट वाला काला डाक्टर
थानेदार के साथ
बातों में मग्न है

'सुनिये,डाक्टर !' मैं कहता हूं
'उस गठरी से
अभी-अभी
एक बाज़ू बाहर निकाला है
वह आदमी हिल रहा है
उसे बरामदे में क्यों धरा है ?'
'चुप रहो !' डांटता है डॉक्टर
'देखते नहीं
मुकाबले में मरा है'

शायद डाक्टर ठीक कहता है
लाश नहीं हिली
पर लाश ने मुझे हिला दिया है

मैं तप नहीं कर पाता
कि कोई घर जल रहा है
कोई हस्पताल
या कोई देश

ऐसे में
कोई डॉक्टर
किसी हस्पताल में
किसी घायल की पट्टियां खोल रहा है
पट्टियां हैं कि द्रोपदी का चीर....
निकलती आ रही हैं
आखिरी पट्टी खोलते ही चिल्लाता है वह :
'गठरी तो खाली है
इसमें तो कोई नहीं
कुछ-नहीं,कुछ नहीं
अरे,कोई है?