(राग मल्हार-तीन ताल)
अरे मन! भज व्रजराजकुमार।
तज अति मलिन विषय-विष, पी नित रूप-सुधा-रस-सार॥
प्रेमानन्द-सुधा-रस-रसमय रसिकराज रस-रूप।
अमित मार-मद-मार सुभग सौन्दर्य विचित्र अनूप॥
अरुण चरण-तल-चिह्न रुचिर शोभित, मृदु चरण-सरोज।
जानु-ऊरु-कटि सुन्दर मनहर, मुरली कर-अभोज॥
विद्युत्-द्युति पट पीत, अलौकिक तनु छवि श्याम तमाल।
कण्ठ रत्न-मणिहार, सौरभित तुलसि-सुमन वनमाल॥
अरुण अधर अति मधुर मनोरम, चित्त-वित्तहर हास।
दशन-कपोल-नासिका नन्दन, नयन निरत नित रास॥
कुटिल भ्रुकुटि, गोरोचन-केसर तिलक सुशोभित भाल।
कुंचित कच, शिखि-शिखा-मुकुट, श्रुति कुण्डल लोल-रसाल॥
वत्सल परम नन्द-यशुमतिके ललित-लड़ैते लाल।
सखा-प्राणधन, व्रज-गोकुल के रक्षक श्रीगोपाल॥
व्रज-युवती-जीवन, जीवन-धन, तन-मन-सब सुख-सार।
लावण्यामृत-सार, नित्य नूतन, नित नव सुकुमार॥