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अर्घ्यदान / साधना सिन्हा


सुबह, आज
अर्घ्यदान दिया
अपने मन के सूरज को !

किरणें उजली
पानी की बूंदों में
बन सतरंगी
बरसीं तन–मन पर
बन मेरी संगी

अस्ताचल में डूबा सूरज
फिर देखा
लौटा मन आंगन में

चहके पंछी
लहराए पौधे
मगन, हिलोर हिया
आंगन में जब
मन के सूरज को
मैंने
अर्घ्यदान दिया ।

सब ही कहते हैं
पर मैंने देखा
जो डूबा, फिर लौटा
मेरा मन सोया
लो फिर जागा

पंछी, पौधे
सतरंगी किरणें
सबने
मेरे मन की
अमित आभा को
मेरे संग
अर्घ्यदान दिया ।