Last modified on 5 अगस्त 2009, at 23:30

अर्जुन देव / परिचय

गुरु रामदास के पुत्र अर्जुन देव का जन्म गोइंदवाल में हुआ। ये सिक्खों के पाँचवें गुरु हैं। इन्होंने कई महान कार्य किए, अमृतसर तथा तरनतारन के मंदिर बनवाए, गुरुओं की बानी को गुरुमुखी में लिखवाया तथा 'ग्रंथ साहब के रूप में मंदिर में उसकी स्थापना करके ग्रंथ साहब की पूजा की परंपरा स्थापित की। जहाँगीर ने इन्हें बडी यातनाएँ दीं।

इन्हें जलते कडाहे में बैठाया गया और कारागार में डाल दिया। पाँच दिन तक अर्जुन देव जले शरीर को लिए पडे रहे, किन्तु शांति भंग नहीं हुई। छठे दिन 'जपुजी का जाप करते-करते शरीर छोड दिया। इस समय इनकी आयु मात्र 43 वर्ष की थी। इन्होंने 6000 से अधिक पद रचे हैं, जिनमें 'सुखमनी सबसे सरस है। इनकी रचना में गुरु-भक्ति और ईश्वर-भक्ति का उपदेश है। भाषा हिंदी अधिक और पंजाबी कम है। इन्होंने कई प्रकार के छंदों का प्रयोग किया है।