Last modified on 28 जनवरी 2022, at 20:09

अर्थों की कनागत / रेखा राजवंशी

कंगारूओं के देश में
तुम आए
तुम्हारा स्वागत ।

भावों को शब्द मिले
हुए दूर कई गिले ।

सूने मन आँगन के
बिरवे में फूल खिले ।

बादल के आँचल में
मेघों के मन मचले ।

तुम आए तो जैसे
सूरज ने रुख बदले ।

रीता पल बुनने लगा
अर्थों की कनागत ।

कंगारूओं के देश में
तुम्हारा स्वागत ।