मेरा है सिर्फ़ मेरा
सोचते-सोचते उसे दे दिए
उँगलियों के नाखून
रोओं में बहती नदियाँ
स्तनों की थिरकन
उसके पैर मेरी नाभि पर थे
धीरे-धीरे पसलियों से फिसले
पिण्डलियों को मथा-परखा
और एक दिन छलाँग लगा चुके थे
सागर-महासागरों में तैर-तैर
लौट-लौट आते उसके पैर
मैं बिछ जाती
मेरा नाम सिर्फ़ ज़मीन था
मेरी सोच थी सिर्फ़ उसके मेरे होने की
एक दिन वह लेटा हुआ
बहुत बेख़बर कि उसके बदन से है टपकता कीचड़
सिर्फ़ मैं देखती लगातार अपना
कीचड़ बनना अर्थ खोना ज़मीन का.