Last modified on 17 मई 2012, at 23:07

अर्धचेतन अवस्था में कविता / रांगेय राघव

ओ ज्योतिर्मयि ! क्यों फेंका है,
मुझको इस संसार में ।
जलते रहने को कहते हैं,
इस गीली मँझधार में ।

मैं चिर जीवन का प्रतीक हूँ
निरीह पग पर काल झुके हैं,
क्योंकि जी रहा हूँ मैं
अब तक प्यार-भरों के प्यार में...