Last modified on 20 अक्टूबर 2017, at 12:59

अलौकिक थी पहली छुअन / सुरेश चंद्रा

अलौकिक थी
पहली छुअन
निष्पाप, निश्छल
आद्र दृष्टि के साक्ष्य में

अंतिम चुंबन तक
हम देह पर देहिल गंध
अनुबंध मात्र रह गये

अतृप्तता के अरण्य से
उकताहट की ऊभ-चूभ में
विलुप्त होते हुये

एक अंतहीन असमंजस
अनंत आपाधापी लिये
हम दोनों प्रेम में
प्रेम के अपराधी हो चुके थे.