मेरे बूढ़े तर्क,
तुम्हारे जवान तर्कों के सामने,
बरसों से डटे हैं, खड़े हैं।
यह शास्त्रार्थ नहीं है,
जीने के ढंग तय करने के
मापदण्डों की लड़ाई है।
तुम्हारे तर्कों की धमनियों में ताजा खून है,
मेरे तर्कों का खून
गाढ़ा है, पर अधिक लाल है।
हार तो कौन माने ?
पर मैं सच कहता हूँ,
मेरे तर्कों के पैर थक गये हैं,
युवा हों चाहे, पर तुम्हारे तर्कों को भी
थकान तो हो रही होगी।
चलो न,
दोनों अपने-अपने तर्कों को
थोड़ी देर बैठने को कहें
और हम भी कुछ पल
साथ-साथ चैन से जी लें।
ध्यान रहे किन्तु, यह हार या जीत नहीं है
केवल युद्ध विराम है,
बिना शर्त
जीने का अवकाश पाने को किया गया
युद्ध विराम !