हमारे दरमियाँ
लम्हा दर लम्हा
अल्फाज़ का इक पुल सा बना जाता है
मैं इस छोर पर कि स ओर हूँ
नहीं जानती
मेरे लिए तो रोज़ सुबह, सूरज
पुल के उस छोर से ही निकलता हैl
हमारे दरमियाँ
लम्हा दर लम्हा
अल्फाज़ का इक पुल सा बना जाता है
मैं इस छोर पर कि स ओर हूँ
नहीं जानती
मेरे लिए तो रोज़ सुबह, सूरज
पुल के उस छोर से ही निकलता हैl