अल्मोड़ा के लाल बाज़ार में खाना थी
मुझे जलेबियाँ
तुमने रोकी ही नहीं गाड़ी
चलते गये छाते गये भरी बरसात में छाते की तरह
मेरे सिर पर
फिर भी भीग गयी मैं
आड़ुओं का टोकरा ख़रीद लिया
थर्मस में चाय
पीते पीते काठगोदाम आए
यह तो इस यात्रा का बाहरी वृतान्त है
अंदर क्या घटाकृ