अवधपुर घुमड़ि घटा रही छाय।
चलत सुमंद पवन पुरवाई नव घनघोर मचाय॥
दादुर मोर पपीहा बोलत दामिनि दमकि दुराय।
भूमि निकुंज सघन तरुवर में लता रही लिपटाय॥
सरजू उमगत लेत हिलोरैं निरखत सिय रघुराय।
कहत प्रतापकुँवरि हरि ऊपर बार-बार बलि जाय॥
अवधपुर घुमड़ि घटा रही छाय।
चलत सुमंद पवन पुरवाई नव घनघोर मचाय॥
दादुर मोर पपीहा बोलत दामिनि दमकि दुराय।
भूमि निकुंज सघन तरुवर में लता रही लिपटाय॥
सरजू उमगत लेत हिलोरैं निरखत सिय रघुराय।
कहत प्रतापकुँवरि हरि ऊपर बार-बार बलि जाय॥