Last modified on 1 जनवरी 2010, at 15:16

अवधूत / राग-संवेदन / महेन्द्र भटनागर

लोग हैं _
ऐसी हताशा में
व्यग्र हो
कर बैठते हैं
आत्म-हत्या!
या
खो बैठते हैं संतुलन
तन का / मन का!
व हो विक्षिप्त
रोते हैं - अकारण!
हँसते हैं - अकारण!
किन्तु तुम हो
स्थिर / स्व-सीमित / मौन / जीवित / संतुलित
अभी तक!
वस्तुत:
जिसने जी लिया संन्यास
मरना और जीना
एक है उसके लिए!
विष हो या अमृत
पीना
एक है उसके लिए!