Last modified on 2 अगस्त 2010, at 11:11

अवशेष / अजित कुमार

जिसे हम बजाते हैं,
उसमें धड़कता हुआ जीवन
अब शेष नहीं ।

केंचुल नहीं,
तो और क्या है-
यह शंख !