अमावस की रात में
अचानक
आँखें चुँधियाते
प्रकाश में
वह सफ़ेदपोश त्रिपुण्डी
मेरी भाषा में बोला —
भाई !
क्या चाहता है ?
मेरा विरोध करना छोड़
बता मन की बात !
कर मन की बात !
और मुझे वोट दे !
सपोर्ट दे !
मेरा अनुयायी बन
जो चाहे वह मुझसे ले-ले।
अन्धियारी रात में भी फैली
इस चकाचौंध में
उसके मुख से
अपनी भाषा में
ख़ुद को भाई का सम्बोधन सुन
मैं आश्चर्यचकित हो गया
सोचता रहा
यह अपनी छोड़
मेरी भाषा
क्यों बोल रहा है ?
यह कैसे सम्भव हुआ ?
कि वह देवभाषा भूल
मेरी भाषा में
मेरी ख़ुशामद कर रहा है !
मेरे सोचने और समझने के
बीच गुज़रे समय का लाभ ले
वह सफ़ेदपोश त्रिपुण्डी
चकाचौंध की उस लौ में
मर्चूरी में लगी
शवशीतलन पेटिका के
उद्घाटन का फ़ीता काटने
दौड़ पड़ा।
ठीक उसी समय
मैं अपनी पेटी उठा
चल दिया स्टेशन,
पालिश ! बूट पालिश !!