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अव्यक्त गीत / अंतर्यात्रा / परंतप मिश्र

ऐसा क्यों होता है कि
तुम कुछ कह न सके और मैं
तुम्हारे शब्दों को तलाशता रहा,
तुम कुछ सुन न सके और मैं
प्रतिपल तुम्हे पुकारता रहा।

तुम कुछ देख न सके और मैं
सुंदर सपनों को सजाता रहा
तुम कुछ महसूस न सके और मैं
दर्द से हमेशा मुस्कुराता रहा।

तुम एक पत्र को न समझ सके और मैं
पातियों पर पातियाँ भेजता रहा,
तुम कोई गीत न गा सके और मैं
कविताओं की रचना करता गया।
 
तुम मित्र न बन सके और मैं
चिर मित्र की कल्पना कर बैठा,
तुम कवितायेँ न समझ सके और मैं
अक्षरों को शब्दों में पिरोता गया।
  
तुम आँखों में झाँक न सके और मैं
आंसुओं को छुपाता रहा,
तुम संगीत न समझ सके और मैं
ह्रदय ताल से गुनगुनाता रहा,
तुम कभी मिल न सके और मैं
तुम्हारी प्रतीक्षा करता रहा।