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अशआर १ / साहिर लुधियानवी

हरचन्द मेरी कुव्वते-गुफ़्तार है महबूस,
खामोश मगर तब‍अए-खुद‍आरा नहीं होती।

मा‍अमूरा-ए-एहसास मे है हश्र-सा बर्पा,
इन्सान को तज़लील गंवारा नहीं होती।

नालां हूं मै बेदारी-ए-एहसास के हाथों,
दुनिया मेरे अफ़कार की दुनिया नहीं होती।

बेगाना-सिफ़त जादा-ए-मंज़िल से गुज़र जा,
हर चीज़ सजावारे-नज़ारा नहीं होती।

फ़ितरत की मशीयत भी बडी चीज है लेकिन,
फ़ितरत कभी बेबस का सहारा नहीं होती।