दर्द के ये अश्रु-भीगे गीत गाता ही रहूँगा
सुई-सी चुभती व्यथा की पीत-वर्णा दूबियों के शीश पर मैं-
हर सुबह इन आँसुओं के घट सजाता ही रहूँगा
गीत गाता ही रहूँगा
रूठ कर उजली हँसी ने
ओढ़ ली काली अमावस
चन्द्र-मुख पर धर हथेली-
श्याम घन की, हँसा पावस
किन्तु, जब तक साथ देगी पीर की सौदामिनी में-
श्याम निशि में भी दिया का पता पाता ही रहूँगा
गीत गाता ही रहूँगा
-12.11.1973