मंच वायदे झंडे नारे
हलचलें सारी ख़ामोश हैं
खामोश हैं राजनीति के आगे मशाल लेकर चलनेवाले
अश्वमेध का घोड़ा
अब सरपट दौड़ेगा
कौन है जो रास इसकी खींचेगा
छत्रप सब मद में चूर हैं अभी भी
किनारे लगा वाम भी
उम्मीदें लगती हैं धराशाई हुई
सिंघनाद है गूँज रहा
पश्चिम ख़ुश हो रहा
पढ़े जा रहे मंत्र निजीकरण निजीकरण निजीकरण
आवारा पूँजी आओ
आसन पर विराजो
हवि देंगे हम किसानों की श्रमिकों की मामूली सब लोगों की
रचनाकाल : 2009