असमंजस में हूँ
’माँ’
मेरा है
एक नन्हाँ-सा सवाल,
अन्दर ही अन्दर
मेरे मन को कचोटता है।
कभी कभार
ऐसा क्यों लगता है?
मानो
किसी झरने को
कोई बेझिझक
बहने से रोकता है।
माँ की निश्छल गोद का
आसरा लेने से
यह ’कोई’
एक मासूम से बच्चे को
सर्वदा टोकता है।